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वंदे मातरम्: 2015 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: बोलना, ज़रूरी है क्या?TRANSLATE THIS PAGE जब हम हद से ज़्यादा बोलते हैं, तब हमें अंदाज़ा भी नहीं होता कि हम कितना ग़लत बोल गए हैं. बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बा वंदे मातरम्: जिस देश के प्रधानमंत्री खुद को …TRANSLATETHIS PAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: हम भाषा के अपराधी हैंTRANSLATE THIS PAGE सहज भाषा के नाम पर हमने, भाषा का वास्तविक सौंदर्य बोध खो दिया है। नई पीढ़ी कितना कुछ क्लिष्ट कहकर अनदेखा कर देगी। कितने अध्याय अनछुए रह वंदे मातरम्: भारतीय जनसंचार संस्थान! बहुत याद …TRANSLATE THIS PAGE वक़्त हाथों से इस तरह सरकता है कभी महसूस नहीं किया था लेकिन आज वक़्त को सरकते देखा। जिस दिन मामा एडमिशन कराने आए थे उसी दिन उन्होंने कहा वंदे मातरम्: विदाई वाला दिन...भीगी पलकों वाली कुछ …TRANSLATE THIS PAGE गीतकार अनुराग अनुभव, अभिषेक बोले तो मैं, राघवेन्द्र, कम्युनिस्ट पत्रकार समर और शताक्षी वंदे मातरम्: दिसंबर 2015TRANSLATE THISPAGE
जहाँ-जहाँ मेरे पग जाएँ वहां तुम्हारे चरण चिन्ह हों. तुम मेरी मैं बना तुम्हारा तुम मुझसे न तनिक भिन्न हो. मैं अँधेरे का प्रेमी था तुमने वंदे मातरम्: जब सवार हुईं आंटी जी पर माता जीTRANSLATE THIS PAGE कॉलेज के आख़िरी दिनों में हमारे रहने का ठिकाना बना मेरठ के गंगानगर का एम ब्लॉक। जिस मकान में हम रहते थे उसी के बग़ल में एक आंटी जी रहती थीं। COMMENTS ON वंदे मातरम्: आत्ममंथन मन को छूती और विचार देती बहुत सुंदर रचना बधाई Jyoti khare https://www.blogger.com वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2015 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: बोलना, ज़रूरी है क्या?TRANSLATE THIS PAGE जब हम हद से ज़्यादा बोलते हैं, तब हमें अंदाज़ा भी नहीं होता कि हम कितना ग़लत बोल गए हैं. बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बा वंदे मातरम्: जिस देश के प्रधानमंत्री खुद को …TRANSLATETHIS PAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: हम भाषा के अपराधी हैंTRANSLATE THIS PAGE सहज भाषा के नाम पर हमने, भाषा का वास्तविक सौंदर्य बोध खो दिया है। नई पीढ़ी कितना कुछ क्लिष्ट कहकर अनदेखा कर देगी। कितने अध्याय अनछुए रह वंदे मातरम्: भारतीय जनसंचार संस्थान! बहुत याद …TRANSLATE THIS PAGE वक़्त हाथों से इस तरह सरकता है कभी महसूस नहीं किया था लेकिन आज वक़्त को सरकते देखा। जिस दिन मामा एडमिशन कराने आए थे उसी दिन उन्होंने कहा वंदे मातरम्: विदाई वाला दिन...भीगी पलकों वाली कुछ …TRANSLATE THIS PAGE गीतकार अनुराग अनुभव, अभिषेक बोले तो मैं, राघवेन्द्र, कम्युनिस्ट पत्रकार समर और शताक्षी वंदे मातरम्: दिसंबर 2015TRANSLATE THISPAGE
जहाँ-जहाँ मेरे पग जाएँ वहां तुम्हारे चरण चिन्ह हों. तुम मेरी मैं बना तुम्हारा तुम मुझसे न तनिक भिन्न हो. मैं अँधेरे का प्रेमी था तुमने वंदे मातरम्: जब सवार हुईं आंटी जी पर माता जीTRANSLATE THIS PAGE कॉलेज के आख़िरी दिनों में हमारे रहने का ठिकाना बना मेरठ के गंगानगर का एम ब्लॉक। जिस मकान में हम रहते थे उसी के बग़ल में एक आंटी जी रहती थीं। COMMENTS ON वंदे मातरम्: आत्ममंथन मन को छूती और विचार देती बहुत सुंदर रचना बधाई Jyoti khare https://www.blogger.com वंदे मातरम्: 2017TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: जनवरी 2018TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: मई 2016 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: दिसंबर 2015TRANSLATE THISPAGE
जहाँ-जहाँ मेरे पग जाएँ वहां तुम्हारे चरण चिन्ह हों. तुम मेरी मैं बना तुम्हारा तुम मुझसे न तनिक भिन्न हो. मैं अँधेरे का प्रेमी था तुमने वंदे मातरम्: मई 2014 मासूम जनता जो हर बार छलि जाती है, जिसका विश्वास हर बार टूटता है उसकी भी चुनाव से उम्मीद होती है कि इस बार परिवर्तन होगा. कोई नयाचेहरा
वंदे मातरम्: मार्च 2014TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: अक्तूबर 2013TRANSLATETHIS PAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: विदाई वाला दिन...भीगी पलकों वाली कुछ …TRANSLATE THIS PAGE गीतकार अनुराग अनुभव, अभिषेक बोले तो मैं, राघवेन्द्र, कम्युनिस्ट पत्रकार समर और शताक्षी वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2021TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: 2020TRANSLATE THIS PAGE ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है, हम कई दफ़ा सुन चुके हैं। सुनते रहे हैं, या शायद सुनते रहेंगे। लेकिन हर पहेली, सुलझती है, धीरे-धीरे वक़्त के साथ। सबका कोई एक वंदे मातरम्: 2015 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: माँTRANSLATE THIS PAGE मेरी दुनिया तुझ तक सिमटी, बाकी सब लगता है सपना, माँ तू है तो दुनिया हैं , तेरे पास ही मुझको रहना. बहुत दिनों से थका-थका हूँ थप वंदे मातरम्: गुज़ारिशTRANSLATETHIS PAGE
बहुत कुछ कहना चाहूँ पर कहा कुछ भी नहीं जाए, रब से ये गुज़ारिश है हलक के पार कुछ आए यूँ गुमसुम सा रहूँ कब तक बता दे तू मेरे मौला! कहीं वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: जहां-जहां तक ये दृष्टि जाए वहां-वहां …TRANSLATE THIS PAGE भटक रहे हो मार्ग केशव! यहां से आगे नहीं है राधा मचा है मन में कैसा कलरव तुम्हारे पथ में अनंत बाधा, सहज से मन का मधुर सा भ्रम है कि तुमसुपथ
वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: व्यथाTRANSLATE THIS PAGE जब परिस्थितियां परिहास करें तो जाने क्यों दुःख होता है . यह हर वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2021TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: 2020TRANSLATE THIS PAGE ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है, हम कई दफ़ा सुन चुके हैं। सुनते रहे हैं, या शायद सुनते रहेंगे। लेकिन हर पहेली, सुलझती है, धीरे-धीरे वक़्त के साथ। सबका कोई एक वंदे मातरम्: 2015 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: माँTRANSLATE THIS PAGE मेरी दुनिया तुझ तक सिमटी, बाकी सब लगता है सपना, माँ तू है तो दुनिया हैं , तेरे पास ही मुझको रहना. बहुत दिनों से थका-थका हूँ थप वंदे मातरम्: गुज़ारिशTRANSLATETHIS PAGE
बहुत कुछ कहना चाहूँ पर कहा कुछ भी नहीं जाए, रब से ये गुज़ारिश है हलक के पार कुछ आए यूँ गुमसुम सा रहूँ कब तक बता दे तू मेरे मौला! कहीं वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: जहां-जहां तक ये दृष्टि जाए वहां-वहां …TRANSLATE THIS PAGE भटक रहे हो मार्ग केशव! यहां से आगे नहीं है राधा मचा है मन में कैसा कलरव तुम्हारे पथ में अनंत बाधा, सहज से मन का मधुर सा भ्रम है कि तुमसुपथ
वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: व्यथाTRANSLATE THIS PAGE जब परिस्थितियां परिहास करें तो जाने क्यों दुःख होता है . यह हर वंदे मातरम्: जनवरी 2021TRANSLATE THISPAGE
शेली, किट्स और ब्राउनिंग कभी पसंद नहीं आए। पसंद आई तो विलियम वर्ड्सवर्थ की फंतासी। नौवीं में पहली बार पढ़ी और अब तक पढ़ रहा हूं लूसी ग्रे। मैथ्यू वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: "सर्वत्र विजय"(विजयी विश्व तिरंगा …TRANSLATE THIS PAGE हे हिम! तू मुझको हिम सा कर दे पर मुझको इतना सा वर दे प्रांतर पर जो गतिविधि हो वह मुझको भी सूचित हो यदि पग शत्रु के इधर बढ़ें तो उनका वंदे मातरम्: गुज़ारिशTRANSLATETHIS PAGE
बहुत कुछ कहना चाहूँ पर कहा कुछ भी नहीं जाए, रब से ये गुज़ारिश है हलक के पार कुछ आए यूँ गुमसुम सा रहूँ कब तक बता दे तू मेरे मौला! कहीं वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: दँशTRANSLATE THIS PAGE कितना जर्जर ये लोकतँत्र है, इससे तो तानाशाही अच्छी, केवल हम दँश झेलते हैँ, सरकार यहाँ है नरभक्षी. जब लोकतँत्र के मँदिर मे, भगवा वंदे मातरम्: ''विजय ''..आयोजन अथवा यत्नTRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: याद आएंगे दोस्त।TRANSLATE THIS PAGE कल कालेज का आख़िरी दिन था आज। पांच साल कब बीते कुछ पता ही नहीं चला। मम्मी बिना मैं एक दिन भी नहीं रह पाता था लेकिन मेरठ में पांच साल बिता गए , बिना रोये, कुछ वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: 2016TRANSLATE THIS PAGE बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम् जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: फ़रवरी 2017TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
Jharne intezaar mein the koi inhe rukne ko kahega Ye dhoondte main yahan tak pahuncha. Par is adbhut rachna ke srijankaar se Abhi bhidoor hoon.
वंदे मातरम्: पलायन का वर्षTRANSLATE THIS PAGE 31 दिसंबर 2018। दुनिया नए साल के स्वागत की तैयारी कर रही थी, मैं अम्मा(दादी) की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने वाराणसी जा रहा था, भवानी वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम् जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: फ़रवरी 2017TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
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वंदे मातरम्: पलायन का वर्षTRANSLATE THIS PAGE 31 दिसंबर 2018। दुनिया नए साल के स्वागत की तैयारी कर रही थी, मैं अम्मा(दादी) की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने वाराणसी जा रहा था, भवानी वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: 2013 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: 2017TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: छोड़ोगे जो गरल धरा पर क्या तुम नहीं …TRANSLATE THIS PAGE तनिक समय अनुकूल हुआ तो नाथ! दर्प क्यों इतना नेह विसर्जित कर बैठे औ गरल सर्प के जितना? छोड़ोगे जो गरल जगत में क्या तुम नहीं जलोगे? त वंदे मातरम्: अप्रैल 2017TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: सितंबर 2014TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: इश्क़ का कॉन्ट्रैक्ट करोगे?TRANSLATE THIS PAGE सुनो! कहो! प्यार हुआ है कभी तुम्हें? हां! कई बार। और जिनसे तुमने प्यार किया, क्या उन्हें भी तुमसे प्यार था? प्यार वन साइडेड कब हो वंदे मातरम्: मौलिकता भ्रम से इतर कुछ भी नहीं.....TRANSLATE THIS PAGE मौलिकता अनैतिक भ्रम से इतर कुछ भी नहीं. एक साहित्यकार पूरा जीवन पढ़ने-लिखने में खपा दे, घट-घट भटके, अनुभवों की गंगा पार कर ले तो भी जीवन के अंत तक वह कुछ भी वंदे मातरम्: जनवरी 2011TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: हम परागों के निषेचन में फंसे हैंTRANSLATE THIS PAGE रूप के उपमान आकुल हो गए हैं दर्प भी उन्माद जितना छा गया है, हम परागों के निषेचन में फंसे हैं फूल के प्राणों पे संकट आ गया है।सूख
वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
Jharne intezaar mein the koi inhe rukne ko kahega Ye dhoondte main yahan tak pahuncha. Par is adbhut rachna ke srijankaar se Abhi bhidoor hoon.
वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
Jharne intezaar mein the koi inhe rukne ko kahega Ye dhoondte main yahan tak pahuncha. Par is adbhut rachna ke srijankaar se Abhi bhidoor hoon.
वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम्: मौलिकता भ्रम से इतर कुछ भी नहीं.....TRANSLATE THIS PAGE मौलिकता अनैतिक भ्रम से इतर कुछ भी नहीं. एक साहित्यकार पूरा जीवन पढ़ने-लिखने में खपा दे, घट-घट भटके, अनुभवों की गंगा पार कर ले तो भी जीवन के अंत तक वह कुछ भी वंदे मातरम्: 2017TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: 2013 निष्प्राण में भी प्राण लाये, और बिन एक शब्द बोले, शब्द अंतस तक समाये, नमन है उस शक्ति को, जिसने धरा पर प्राण फूकें, जिनके अहैतुककृपा से
वंदे मातरम्: सितंबर 2012TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: फ़रवरी 2014TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: छोड़ोगे जो गरल धरा पर क्या तुम नहीं …TRANSLATE THIS PAGE तनिक समय अनुकूल हुआ तो नाथ! दर्प क्यों इतना नेह विसर्जित कर बैठे औ गरल सर्प के जितना? छोड़ोगे जो गरल जगत में क्या तुम नहीं जलोगे? त वंदे मातरम्: मार्च 2017TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: सितंबर 2014TRANSLATE THISPAGE
तेरे पास ही मुझको रहना. बहुत दिनों से थका-थका हूँ. थपकी दे के सुला दे माँ, तुझ से दूर रहा नहीं जाता. मुझको पास बुला ले माँ. पर सितंबर 01,2014 22
वंदे मातरम्: इश्क़ का कॉन्ट्रैक्ट करोगे?TRANSLATE THIS PAGE सुनो! कहो! प्यार हुआ है कभी तुम्हें? हां! कई बार। और जिनसे तुमने प्यार किया, क्या उन्हें भी तुमसे प्यार था? प्यार वन साइडेड कब हो वंदे मातरम्: अक्तूबर 2012TRANSLATETHIS PAGE
मैं अक्सर डग-मग होता हूँ, नभ के उत्तेजित पवनों से, थक हार बैठता हूँ प्रायः, थल के दुखदाई वचनों से. ये जग मेरे अनकूल नहीं , मुझको अनुकूलन वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
Jharne intezaar mein the koi inhe rukne ko kahega Ye dhoondte main yahan tak pahuncha. Par is adbhut rachna ke srijankaar se Abhi bhidoor hoon.
वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2012 मैं भागवान पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा पर कुछ तो अनुचित है जो मुझे वेदना में खीच रहा है. मेरी स्थिति कुछ ऐसी है. '' किसी की जिन्दगी वंदे मातरम्: ख़ामोशीTRANSLATE THISPAGE
Jharne intezaar mein the koi inhe rukne ko kahega Ye dhoondte main yahan tak pahuncha. Par is adbhut rachna ke srijankaar se Abhi bhidoor hoon.
वंदे मातरम्: आत्ममुग्धताTRANSLATE THIS PAGE आत्मप्रशंसा, आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता जीवन के अपरिहार्य वंदे मातरम्: छूटता बचपन ,टूटते सपने।TRANSLATE THIS PAGE दिन भर लकड़ियाँ बेच कर शाम को घर आते हैं ये बच्चे और बाप इनके मेहनत के पैसे का शराब पीता है। मेरे कॉलेज के कैंटीन में ये बच्चा कामकरता
वंदे मातरम्: देश रौशन रहे, हम रहें न रहें..TRANSLATE THIS PAGE हम खड़े हैं यहाँ हाथ में जाँ लिए बुझ रहे हैं घरों में ख़ुशी के दिए, देश रौशन रहे हम रहे न रहे आखिरी साँस तक हम तो लड़ने चले वंदे मातरम्: हर हर महादेवTRANSLATE THIS PAGE दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से ह वंदे मातरम्: तेरा-मेरा झूठा सचTRANSLATE THIS PAGE मैं आपसे कभी बात नहीं करुंगी। हमेशा फोन मैं करती हूँ आप भूल कर भी कभी कॅाल नहीं करते हो। हर बार बिज़ी होने का बहाना होता है, हर बार मैं पूछत वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम्: मौलिकता भ्रम से इतर कुछ भी नहीं.....TRANSLATE THIS PAGE मौलिकता अनैतिक भ्रम से इतर कुछ भी नहीं. एक साहित्यकार पूरा जीवन पढ़ने-लिखने में खपा दे, घट-घट भटके, अनुभवों की गंगा पार कर ले तो भी जीवन के अंत तक वह कुछ भी वंदे मातरम्: 2017TRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: 2013 निष्प्राण में भी प्राण लाये, और बिन एक शब्द बोले, शब्द अंतस तक समाये, नमन है उस शक्ति को, जिसने धरा पर प्राण फूकें, जिनके अहैतुककृपा से
वंदे मातरम्: सितंबर 2012TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: फ़रवरी 2014TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: छोड़ोगे जो गरल धरा पर क्या तुम नहीं …TRANSLATE THIS PAGE तनिक समय अनुकूल हुआ तो नाथ! दर्प क्यों इतना नेह विसर्जित कर बैठे औ गरल सर्प के जितना? छोड़ोगे जो गरल जगत में क्या तुम नहीं जलोगे? त वंदे मातरम्: मार्च 2017TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: सितंबर 2014TRANSLATE THISPAGE
तेरे पास ही मुझको रहना. बहुत दिनों से थका-थका हूँ. थपकी दे के सुला दे माँ, तुझ से दूर रहा नहीं जाता. मुझको पास बुला ले माँ. पर सितंबर 01,2014 22
वंदे मातरम्: इश्क़ का कॉन्ट्रैक्ट करोगे?TRANSLATE THIS PAGE सुनो! कहो! प्यार हुआ है कभी तुम्हें? हां! कई बार। और जिनसे तुमने प्यार किया, क्या उन्हें भी तुमसे प्यार था? प्यार वन साइडेड कब हो वंदे मातरम्: अक्तूबर 2012TRANSLATETHIS PAGE
मैं अक्सर डग-मग होता हूँ, नभ के उत्तेजित पवनों से, थक हार बैठता हूँ प्रायः, थल के दुखदाई वचनों से. ये जग मेरे अनकूल नहीं , मुझको अनुकूलन वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2020TRANSLATE THIS PAGE ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है, हम कई दफ़ा सुन चुके हैं। सुनते रहे हैं, या शायद सुनते रहेंगे। लेकिन हर पहेली, सुलझती है, धीरे-धीरे वक़्त के साथ। सबका कोई एक वंदे मातरम्: दिन बहुरते हैंTRANSLATE THIS PAGE अच्छे दिनों की बुराई इतनी सी है कि उनका प्रभाव बहुत क्षणिक होता है. बुरे वक़्त से दो दिनों के लिए ही भेंट हो जाए तो महीनों के अच्छेदिन नि
वंदे मातरम्: मेरा देश:विडम्बना और यथार्थTRANSLATETHIS PAGE
भारत, मेरा भारत, मेरे सपनों का भारत, सुन कर कितना अच्छा लगता है कि हम विश्व के सबसे बड़े गणतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक हैं, सोने पे सुहागा ये है की संसार का वंदे मातरम्: ''विजय ''..आयोजन अथवा यत्नTRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: निन्दक नियरे राखियेTRANSLATE THIS PAGE कुछ व्यक्तियों का मुख्य ध्येय ही निन्दा करना होता है, वे इसी पावन उद्देश्य हेतु धरती पर अवतरित होते हैं। निन्दा का विषय वैसे तो नियमित बदलत वंदे मातरम्: हमसफ़र में सफ़रTRANSLATE THIS PAGE पहली तारीख की रात ट्रेन में कटी। एक टाइम का अघोषित उपवास रखना पड़ा। ट्रेन सात घंटे लेट है, वंदे मातरम्: नारी…..एक वेदनाTRANSLATE THIS PAGE दिल्ली सरकार की निष्क्रियता और नपुंसकता में अधिक अंतर नहीं है वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: एक और दामिनीTRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम् बोलना ग़लत नहीं है, लेकिन इतना ज़्यादा बोलना, हर बात पर बोलना, बिना सोचे-समझे बोलना, सही भी नहीं है. सोचने में वक़्त लगता है, बोलनेमें
वंदे मातरम्: 2020TRANSLATE THIS PAGE ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है, हम कई दफ़ा सुन चुके हैं। सुनते रहे हैं, या शायद सुनते रहेंगे। लेकिन हर पहेली, सुलझती है, धीरे-धीरे वक़्त के साथ। सबका कोई एक वंदे मातरम्: दिन बहुरते हैंTRANSLATE THIS PAGE अच्छे दिनों की बुराई इतनी सी है कि उनका प्रभाव बहुत क्षणिक होता है. बुरे वक़्त से दो दिनों के लिए ही भेंट हो जाए तो महीनों के अच्छेदिन नि
वंदे मातरम्: मेरा देश:विडम्बना और यथार्थTRANSLATETHIS PAGE
भारत, मेरा भारत, मेरे सपनों का भारत, सुन कर कितना अच्छा लगता है कि हम विश्व के सबसे बड़े गणतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक हैं, सोने पे सुहागा ये है की संसार का वंदे मातरम्: ''विजय ''..आयोजन अथवा यत्नTRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: निन्दक नियरे राखियेTRANSLATE THIS PAGE कुछ व्यक्तियों का मुख्य ध्येय ही निन्दा करना होता है, वे इसी पावन उद्देश्य हेतु धरती पर अवतरित होते हैं। निन्दा का विषय वैसे तो नियमित बदलत वंदे मातरम्: हमसफ़र में सफ़रTRANSLATE THIS PAGE पहली तारीख की रात ट्रेन में कटी। एक टाइम का अघोषित उपवास रखना पड़ा। ट्रेन सात घंटे लेट है, वंदे मातरम्: नारी…..एक वेदनाTRANSLATE THIS PAGE दिल्ली सरकार की निष्क्रियता और नपुंसकता में अधिक अंतर नहीं है वंदे मातरम्: पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।TRANSLATE THIS PAGE पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे। हरिराम आचार्य जी ने इस लेटर में जो मेरी शिकायत लिखी वंदे मातरम्: एक और दामिनीTRANSLATE THIS PAGE जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: नवंबर 2013TRANSLATE THISPAGE
आज एक अर्से के बाद. सुकून मिला. जब किसी ने मुझसे कहा. कि. पत्थरों कि दुनिया में. रहते रहते. इंसान भी पत्थर. हो गए हैं. पर नवंबर 19, 2013 2टिप्
वंदे मातरम्: 2015 जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: सितंबर 2012TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: फ़रवरी 2015TRANSLATE THISPAGE
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. वंदे मातरम्: नवंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
बुधवार, 9 नवंबर 2016. पापा! मुझे सब पढ़ेंगे।. पापा! मेरे नम्बर भले ही इस बार कम आए हों लेकिन मुझे एक दिन मेरे सारे टीचर्स पढ़ेंगे।हरिराम
वंदे मातरम्: छोड़ोगे जो गरल धरा पर क्या तुम नहीं …TRANSLATE THIS PAGE तनिक समय अनुकूल हुआ तो नाथ! दर्प क्यों इतना नेह विसर्जित कर बैठे औ गरल सर्प के जितना? छोड़ोगे जो गरल जगत में क्या तुम नहीं जलोगे? त वंदे मातरम्: दिसंबर 2016TRANSLATE THISPAGE
हर हर महादेव. दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ वंदे मातरम्: समय धरावै तीन नाम- परशु, परशुवा परशुरामTRANSLATE THIS PAGE गांव में पहली बार दो तल्ले का घर तैयार हुआ. झोपड़ियों वाले गांव में पहली बार ईंट-गारा का पक्का मकान देखकर लोग हैरान रह गए. वंदे मातरम्: हम परागों के निषेचन में फंसे हैंTRANSLATE THIS PAGE रूप के उपमान आकुल हो गए हैं दर्प भी उन्माद जितना छा गया है, हम परागों के निषेचन में फंसे हैं फूल के प्राणों पे संकट आ गया है।सूख
वंदे मातरम् जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा. सोमवार, 9 सितंबर 2019 हम शहरों से ऊबे हैं पतझर जैसे क्यों दिन हैं सिसकी वाली सब रातें, उलझन को अंक समेटे कितनी अनसुलझी बातें। क्या समझ हमें आयेगा नगरों का यह कोलाहल, हा! कौन यहां पीयेगा जगती की पीर हलाहल। जीवन भर का आडम्बर आडम्बर ही जीवन भर, मन कहे चलो अब छोड़ो कुछ शेष बचा है घर पर। इक खटिया है दो रोटी जी भर पीने को पानी, भरपेट हवा मिलती है दस लोग हज़ार कहानी। इच्छाओं पर अंकुश है भोली-भाली सौ आंखें, दो बूंद धरा पर पड़ती सबको उग आतीं पांखें। हर शाम हवा चलती है हर रात टीमते तारे, हर सुबह कूकती कोयल हर दिन क्या ख़ूब नज़ारे। हम शहरों से ऊबे हैं वैभव में रहे किनारे, अब गांव लौट आओ तुम मन ही मन मीत पुकारे। हम लौट चलेंगे साथी शहरों से खाकर ठोकर, जाने क्या क्या हासिल कर जाने कितना कुछ खोकर। बस काट रहे दिन अपना अनुभव की गीता गाकर, कर्मों की आहुति देकर जीवन का आशिष पाकर। - अभिषेक शुक्ल। पर सितंबर 09, 20194
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ब्लॉग करें!रहता.
लगता है कि कोई बोझ था, उतर गया. अब सब कुछ नया. सब कुछ फिर से. जैसे मन उर्जस्वित हो गया हो...जैसे मनचाहा वर मिल गया हो...जैसे किसी ने कह दिया हो- का चुप साधि रहा बलवाना.....अजर अमर गुननिधि सुत होऊ..... फिर क्या.... लगने लगता है......दिन बहुर गएहैं.
दिन बहुरते हैं. पर सितंबर 08, 20195
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ब्लॉग करें!जाएंगे.
उनकी बातों से तो बिल्कुल भी नहीं लगा. वही रौब, वही अंदाज़ जिसे हम बचपन से देखते-सुनते आए हैं. अच्छे वाले मन ने कहा कि काका ठीक हो जाएंगे. पहले की तरह ही जैसे वे घोड़ा टमटम टॉनिक पीने के बाद हो जातेथे.
कुछ ठीक नहीं हुआ. काका की तबियत खराब होती चली गई गई. मुझे याद नहीं, काका एकादशी छोड़कर कोई व्रत रहे हों. मम्मी की ज़िद पर काका कभी-कभार जन्माष्टमी और एकादशी के दिन व्रत रख लेते थे. नहीं तो दोनों वक़्त भरपेट खाने वाले लोगों में से एक मेरे पाले काका भी थे. सुना कि काका ने 23 जून के बाद खाना ही नहीं खाया. कुछ खा ही नहीं पा रहे थे, शायद खाना ही नहीं चाह रहे थे. जीवन भर का व्रत, जीवन के अंतिम दिनों में कर बैठे, भले विवशता से ही सही. व्रत पूरा हुआ, काका चले गए. बचपन में काका से डर लगता था फिर भी काका बुरे नहीं लगते थे. बिलकुल बाबा की तरह, काका की भी डांट अच्छी लगती थी. कई बार डांट खाने के लिए ही सही, उन्हें हम लोग जानकर ग़ुस्सा दिलाते थे. कभी बहुत देर तक खेलते रहे तो काका का पारा चढ़ जाता था. कहते, अच्छा चलो, अब पढ़ो. बहुत खेल होइ गय. पढ़ना न लिखना, दिन्न भर उहै बैट. बद्री, बलराम, परदेसी और बड्डू काका के डांट के बाद खिसक लेते थे, हम भी दबे मन से घर में स्टंप उठाकर चल देते थे. काका ने डांटा तो फ़ाइनल. गेंद-बल्ले का उठनातय.
फिर अगले ही दिन मौका मिलता खेलने को. काका की डांट मुझे ही नहीं, भइया को भी पड़ी है. भइया की घर में न टिकने की आदत से दो लोग परेशान थे. अम्मा और काका. मम्मी को कुछ ख़ास फ़र्क़ पड़ता नहीं था. बाबा भी अपनी धुन में मस्त रहते थे. पापा देर से आते तो भइया घर में मिलते. लेकिन अम्मा और काका को बहुत दिक़्क़त थी भइया के घूमने से. काका जहां मिलते, सुनाकर भइया को घर ही भेजते. घर में घुसते ही अम्मा फ़ायर. काका भ्रमणकारी थे. पांव नहीं टिकते थे उनके. गांव में घूमने निकलो तो कहीं न कहीं मिल जाते. जहां मिलते, वहीं टोकते. फिर घर वापस आनापड़ता.
भइया और मेरा पूरा बचपन 'पाले काका हो!' चिल्लाते बीता है. दरअसल काका दिन भर घर रहते थे, लेकिन जब खाने का वक़्त होता, काका निकल लेते थे. अम्मा किसी को खाना ले जाने नहीं देती, जब तक पाले काका खाना न खा लें. मजबूरन हमें चिल्लाना पड़ता. सुबह-शाम दोनों वक़्त. हमारे साथ पापा भी चिल्लाते थे. आस-पड़ोस में भी बच्चे मज़े लेकर चिल्लाते. सबको पता चल जाता कि घर में खाना बन गया है. उस वक़्त मोबाइल वाला ज़माना नहीं था कि कॉल कर दें. जब मोबाइल वाला ज़माना आया, तब भी काका मोबाइल नहीं रखते, उन्हें ऐसे ही चिल्लाकर बुलाना पड़ता था. काका का फ़ोन, इंद्रजित ही चलाता, काका के हाथ में फोन नहीं रहा. तीन-चार बार काका ने ख़ुद के लिए फ़ोन ख़रीदा होगा. फिर ख़रीदना ही छोड़ दिया. इसलिए काका-काका चिल्लाना हमारी आदत में शुमार हो गया. पापा चिल्लाते, पाले...पाले हो, ये पाले... हमें भी हंसी आती. हम भी पापा का साथ देने आ जाते. काका बस चाय के टाइम पर मौजूद रहते थे. शाम की चाय, उनके आने पर ही बनती थी. पाले काका, अम्मा के सबसे ख़ास थे. कहां कौन सा खेत, कौन काट-बो रहा है, सबकी ख़बर काका ही रखते. किसे खेत बटइया पर देना है, किसे नहीं देना है, सब काका के हाथ में था. अम्मा का बस अप्रूवल होता था. अम्मा उन्हें बहुत मानती. शायद तभी, अम्मा के जाने के 6 महीने के भीतर काका भी वहीं पहुंच गए जहां अम्मा है. शायद वहां, अम्मा का राज-काज देखने वाला कोई सहयोगी नहीं पहुंचा था, जो भरोसेमंद हो. काका भी वहींचले गए.
पापा की आदत है कि जब वे खेती करते हैं, तो केवल दो से तीन बार ही खेत जाते हैं. पहली बार जिस दिन बुवाई होती है. दूसरी बार जब फसल कटती है. कभी-कभार तब चले जाते हैं, जब खेत में पानी चल रहा हो. शेष दिनों में क्या हो रहा है, इससे ख़ास मतलब नहीं होता. सारी ज़िम्मेदारी पाले काका की होती थी फिर. भइया शाम को टहलने भले ही चले जाते हैं, खेत देखने के मक़सद से शायद ही कभी जाते हों. ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि पाले काका थे. पापा जब कचहरी से लौटते थे, दिन भर की सारी बातें, वहीं आंगन में पापा से बताते. पापा हूं-हूं करके सुनते रहते. कुछ पूछते जो काका को ख़राब लगता तो कहते, भै बाबू, तुहूं उहै मेर कहत हौ. यस नाहीं है. फिर काका अपनी कहानी बतानेलगते.
सच बात थी, पापा भी उनका बहुत लिहाज़ करते थे. अम्मा, बड़ी बुआ के बाद, पापा ने शायद उन्हीं की सलाह मानी हो. सुबह-शाम एक चक्कर खेत का मारे बिना काका को चैन नहीं. जाने से दो महीने पहले तक पाले काका की नियमित दिनचर्या में शामिल था खेत जाना. लेकिन फिर बीमार रहने लगे. उस तरीके से घूम नहीं पाते थे. भगवान नारद की तरह कभी एक जगह न बैठने का वरदान मिला था काका को. जाते वक़्त काका ने खाट पकड़ ली थी. उन्होंने घूमना कम कर दिया था. तभी अम्मा की वार्षिकी थी, और काका उस दिन घर नहीं आ सके. वे अपने घर पर ही लेटेरहे.
लग गया था कि काका अब ज़्यादा दिन के मेहमान नहींहैं.
बचपन के हर क़िस्से में काका शामिल हैं. उनके अध्याय को छोड़कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता. जीवन में पहली बार मेला घूमने काका के साथ ही गया हूं. काका मुझे और भइया को बहुत दिनों तक मेला दिखाने ले जाते. तब तक ले गए हैं, जब तक हम बहुत बड़े नहींहो गए.
शोहरतगढ़, लेदवां, माधवपुर, काका जहां तक जा पाते, हमें मेला ले जाते. मेला में जलेबी, समोसा और उसके बाद गुब्बारा. हमारा इतना ही मेला होता था. फिर काका गट्टा खरीदते. वहीं से कुछ न कुछ सबके लिए काका खरीदकर लाते. अम्मा सबको मेला करने का पैसा बांटती थी. उसमें काका का भी हिस्सा होता था. काका को दुनिया का कोई भी डॉक्टर दवा लिखकर दे दे, विश्वास नहीं होता. उनकी वैद्य मम्मी ही थी. मम्मी के बिना अप्रूवल के काका कोई दवा नहीं खाते. चाहे एमडी लिखे काका के लिए दवाई. कहते रुको दुलहिन के देखाय ली तब दवइया खाब न. एक दिन मैं घर के बाहर क्रिकेट खेल रहा था. सामने गेंद चली गई, उठाने गया तो कुतिया ने काट लिया. ज़रा सा भी ख़ून नहीं निकला था लेकिन काका परेशान हो गए. गांव में ऐसी मान्यता है कि जिसे कुत्ते ने काटा हो, उसे कुआं झंका दिया जाए तो कुत्ते के काटने का प्रभाव कम हो जाता है. काका ने हाथ पकड़कर पूरे गांव का चक्कर लगवा दिया. 52 से ज़्यादा कुएं हैं मेरे गांव में. मैं चिल्लाता ही रहा कि कुत्ते ने नहीं काटा है, काका ने एक न सुनी. काका तो काका थे, उन्हें रोक कौन सकता था. रिश्ते केवल ख़ून वाले ही सच नहीं होते. भावनाओं के रिश्ते भी उतने ही पवित्र होते हैं, उनकी भी निकटता वैसी ही होती है. कुछ भी अंतर नहीं होता. ऐसे में किसी अपने का चले जाना, बहुत दुखता है. कुछ टूटता है, बेहद भीतर तक. कहा जा सकता है कि काका को असह्य पीड़ा से मुक्ति मिली, लेकिन मन किसी को भी मुक्त करना कहां चाहता है. अपनों को कौन खोना चाहता है. काका से जुड़ी हुई कितनी यादें हैं. लेकिन अब वे सिर्फ़ यादें हैं. काका जा चुके हैं. हैं से थे होने की दूरी उन्होंने तय कर ली है. काका अब स्मृति बन चुके हैं. घर जाने पर उनकी खाट दिख सकती है, जहां रहते थे, वो घर दिख सकता है, उनकी लाठी दिख सकती है, लेकिन काका नहीं दिख सकते. मिल नहीं सकते, बात नहीं कर सकते. कहीं वो आवाज़ सुनाई नहीं दे सकती कि, हो लाला, तू कब पंहुच्यौ. हम अगोरित रहेन न. काका इस बार भी शायद इंतज़ार करते रह गए होंगे. लेकिन अब का. जब चले गए तो चले गए. जीवन के दूसरे छोर पर जहां समावर्तन के लिए राह नहीं होती. वहां जाने के पदचिन्ह मिलते हैं, और आने की स्मृतियां. इनके बीच कुछ भी शेष नहीं रहता. कुछ भी.... पर जुलाई 06, 20192
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ब्लॉग करें!गया है,
हम परागों के निषेचन में फंसे हैं फूल के प्राणों पे संकट आगया है।
सूख जाना फूल की अन्तिम नियति है पर भंवर को कब हुआ है भानइसका,
प्यास अधरों की रहे बुझतीपरस्पर
लालसा में सच कहो क्या दोषकिसका?
जीविका है या गले की फांस हैयह
रोज़ इच्छाओं को कसती जारही है,
दास हूं मैं या तनिक स्वायत्तता है मति इसी संशय में फंसती जारही है।
वृक्ष था अब ठूंठ बनकर रहगया हूँ
सूखने के वक़्त शायद आ गया है मोक्ष ने फिर से मुझे धोखादिया है
क्षीण हो जाना मुझे भी भागया है।
-अभिषेक शुक्ल (तस्वीर- @Philippe Donn) पर मई 14, 2019 कोई टिप्पणी नहीं: इस संदेश के लिए लिंक इसे ईमेल करेंइसे
ब्लॉग करें!था
एक दिन के लिए चांद चाहता था उसे न मिले उधार की रोशनी, पेड़ की बहुत इच्छा थीकि
इक रोज़ वह अपना फल खाए गाय अपना ही दूध पीने के लिए कई दिनों से तड़प रही थी नदियों की इच्छा थी कि एक दिन के लिए वे तालाब होजाएं
समंदर चाहता थाकि
कोई विजातीय धारा उसमें नगिरे,
फगुना की इच्छा थीकि
एक दिन के लिए ही सही वह सभी रिश्तों से पार पा ले माई, बहिन, भौजाई, ननद, मेहरारू के विशेषणों से इतर एक दिन वह बस फगुनाही रहे,
मजदूर चाहते थेकि
वे ख़ुद अपने मालिक बन जाएं, प्रथाएं चाहती थींकि
उनकी ओट मेंकिसी की
सिसकियां न सुनाई दें,आसमान
एक दिन के लिए सिकुड़ना चाहता था, धरती चाहती थीकि
उसकी गोद में लुटेरों, डाकुओं, चोरों, और बलात्कारियों को न ज़बरन दफ़नाया जाए, चाहती तो सुनरकी भी थी ब्याह हो जाए बड़के बखरियामें
पर
चाहने से क्या होता है तन से मनचाहा हमसफ़र तो नहींमिलता
उसके लिए पैदा होना पड़ता है कुलीन बनकर, चाह तो भगवान भी रहा है उसके सिर न मढ़े जाएं होनी, अनहोनी करने और कराने के बेतुके कलंक वह चाहता है कि मानस की पंक्तियों से कोईमिटा दे
होइहि सोइ जो राम रचि राखा वह चाहता है कि कोई झुठला दे वृक्ष कबहु न फल भखें वालादोहा
उसका भी मन करता है धरती की तमाम प्रत्याशाओं, वर्जनाओं, कुंठाओंऔर
महत्वाकांक्षाओं के दोष उस पर न थोपे जाएंलेकिन
चाह तो उसकी भी अधूरी है विवश है वह अपने निर्माताओं के रचे गए व्यूह में फंसकर, एक दिन के लिए वह भी चाहता है मुक्त होना इस धारणा सेकि
वह ईश्वर है। पर मार्च 29, 20197
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ब्लॉग करें!खले?
सारे वचन तोड़ बैठे हो, अपने नयन फोड़ बैठे हो; किसने प्रियतम मति है फेरी अकिंचन, हम रह गए ठगे! कल तक सब कुछ उत्सवमय था, जीवन कितना सुमधुर लय था; हुए पराये तुम पल भर में, बरसों, आधी नींद जगे। प्यार! अब मन न कहीं लगे। पर मार्च 24, 20191
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ब्लॉग करें!हैं।
संत कबीर नगर में जिला योजना की बैठक हो रही है। बैठक के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांसद शरद त्रिपाठी ने अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश सिंह को जूतों से पीट डाला। पहले बहस शुरू हुई, फिर हाथापाई। फिर गालियां और कुटाई साथ साथ। और जनता इनसे उम्मीद करती है ये विकास करने के लिए बैठे हैं। ये क्रेडिटखोर लोग हैं, इन्हें बस क्रेडिट चाहिए सीवी मजबूत करने केलिए।
अगर बीजेपी में थोड़ी भी शर्म बची होगी तो इन दोनों महानुभावों को पार्टी से बाहर फेंक देगी। साथ ही दूसरी पार्टियों को भी इन्हें लपकने में उत्सुकता नहीं दिखाई जानी चाहिए। लोकतंत्र के काले धब्बे हैं ऐसे नेता। इनका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिये। (वीडियो सुनने से पहले हेडफोन इस्तेमाल करें, और बच्चे इस पोस्ट से दूररहें।)
पर मार्च 06, 20192
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ब्लॉग करें!तक.
पेट सागर है....भर नहीं सकता. आजीवन रिक्त रहता है. ऐसा मैं नहीं 'कड़जाही काकी' कह के गई है. कई बार लगता है कि भाग जाना चहिए हमें कहीं. अपने-अपने दायित्वों से. क्या ही कर लेंगे हम दुनिया में रहकर या दायित्व निभाकर. पलायन इतना भी बुरा है क्या. पर जिन्हें हम छोड़कर भागते हैं वे ज्यादा याद आते हैं. भागना थोड़ा मुश्किल भी है. हर कोई सिद्धार्थ तो है नहीं जिसे भागकर बोध होजाएगा.
आनंद तो मिलेगा नहीं. मिलते ही नहीं. भला बुद्ध का क्या होता अगर उन्हें आनंद मिला न होता. दरअसल महत्ता तो बस आनंद की है. मैं आनंद खोज रहा हूं. .....काश कह सकता. आनंद की तलाश बिना स्वतंत्रता के. स्वतंत्रता क्या स्वायत्तता भी. गुलामों के ज्ञान पर भरोसा कौन करे. कौन कहना है कि दास प्रथा खत्म हुई है. खत्म हो ही नहीं सकती. क्योंकि कुछ भी खत्म नहीं हो सकता. सब सतत् है. अवस्था परिवर्तन ही शाश्वत है. ऐसा मैं नहीं मानता, पर पुरखे मानते हैं. पुरखे गलत हैं इसे मैं साबित नहीं कर सकता. सही हैंइसे भी.
मन यही कह रहा है कि गुलामों के पास कोई ज्ञान नहीं होता सिवाय दायित्व बोध के. गले में पट्टा है.....ओखरी में मूड़ा है...पहरुआ गिनते रहो...जूझतो रहो....सवाल यही है कि गुलामों का क्या कोई आनंद हुआ है. अगर हुआ है तो जानने की उत्कंठा है. कई बार यह भी लगता है कि बंधनों की गुलामी से भागे हुए लोग ही बुद्ध हुए हैं. पता नहीं. कौन जाने. सबकी अपनी-अपनी मंजिल. हमसे क्या. जेकर मूड़ा ओखरी में हो, तेहि गिनै. हमसे का. (फोटो क्रेडिट- pixabay.com) -अभिषेक शुक्ल. पर मार्च 03, 20192
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ब्लॉग करें!रे
अम्मा(दादी) वादा तोड़ गई। अम्मा ने कहा था कि अभी कहीं नहीं जाने वाली। जिस दिन अम्मा ने हमें छोड़ा उस दिन सुबह अम्मा से वीडियो चैट भी हुई थी। अम्मा ने कहा था, ' लाला ते परेशान न हो, हम कहूं जाब नाहीं। हमार तबियत बहुत ठीक है। घबरा न।' भाभी ने रात में मैसेज किया था कि अम्मा की तबियत खराब है लेकिन अम्मा से बात हुई तो मुझे लगा कि अम्मा फ़िट है। हमेशा की तरह। उस दिन भी वही खनकती आवाज़ थी। कहीं से नहीं लगा कि अम्मा जाने के मूड में है लेकिन अम्मा चली गई। जब अम्मा गई तो भइया अम्मा के पांव सहला रहे थे। पैर दबाते-दबाते अम्मा के पैर ठंडे पड़ गए। अम्मा ने अपना वादा तोड़ दिया था। जा चुकी थी, वहां जहां से कोई नहीं लौटता। अम्मा ने कहा था कि अभी मेरा जनेऊ कराएगी। मेरे भतीजे-भतीजियों, भानजे-भानजियों को खिलाएगी। अम्मा ने झूठ बोला था। उसने जाने का ठान लिया था, चली भी गई, चुपके से। ऐसे कोई जाता है क्या। शेखर के जाने के बाद आस्था टूटी थी, अम्मा ने हिम्मत तोड़ दी। एक सदमे से उबरने की कोशिश परिवार कर रहा था कि अम्मा चली गई। अम्मा ने झटका दिया है। मुझे जब भी 3 दिन से ज़्यादा छुट्टी मिलती मैं घर भाग जाता था। वजह अम्मा थी। लॉ कर रहा था तब भी, IIMC गया तब भी। कई बार दोस्तों ने ज़ोर दिया कि कुछ दिनों के लिए कहीं ट्रिप पर चलते हैं। मुझे 2 दिन से ज़्यादा वक़्त ट्रिप पर ख़र्च करना अच्छा ही नहीं लगता। मुझे हर हाल में घर भागना होता था। अम्मा केपास।
दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत इंतज़ार छुट्टी का होता है, ख़ासकर तब जब अम्मा की गोदी में सर रखकर सोने को मिले। अफ़सोस अब ऐसा नहीं होगा। अम्मा जा चुकी है। 2018 ने परिवार को सदमा दिया है जिससे उबरना मुश्किल है। जब दुनिया न्यू ईयर मना रही थी तब 1 जनवरी को मैं गंगा में अम्मा की अस्थियां विसर्जित कर रहा था। अम्मा बिना घर अजीब सा लग रहा है। सब कुछ सूना-सूना। ऐसा लग रहा है कि घर की रौनक चली गई है। इतना उदास घर कभी नहीं लगा। अम्मा के जाने के बाद की रिक्तता भरी नहीं जा सकती। अम्मा सबकी अम्मा थी। सुबह जब घर में चाय बनती थी तो जब तक पूरे टोले में अम्मा चाय बंटवा न दे उसे चैन नहीं मिलता। पड़ोस के छोटे-छोटे बच्चे जब कप लेकर घर दौड़ते तो अम्मा कई बार खाना उतरवाकर चाय बनवाती। घर में कुछ अच्छा बन जाए तो टोले में किसी का घर छूटे न। सबको बुलवाकर अम्मा खाना बांटती। गांव के पीछे एक गांव है अतरी। उसी से सटे हिस्से में हमारा खेत है। खेत बटइया पर दिया गया है। एक आदमी ने अम्मा से एक बटाईदार की शिकायत की। अम्मा से बताया कि खेत से बराबर पैदा नहीं आ रहा है। उसके घर में कोई मर्द है नहीं कि खेती कर पाए। उसका खेत छुड़वा दें। अम्मा ने कहा, 'ओकरे घर में केहु है नाहीं। अकेल मेहरारु है, हम ओकरे जिए-खाए के आलंब नाहीं छीनब। जब तक ऊ खुद नाहीं कही कि मैय्या हम अब नाहीं खेती कइ पाइब तब तक ओकर खेत हम नाहीं छोड़ाइब।' अम्मा ने कई परिवारों को पाला है। जाते-जाते आदेश देकर भी गई है कि इन्हें संभालना। गांव में जिनके अपने बच्चे बुढ़ापे में छोड़ते उन्हें अम्मा दोनों टाइम खाना खिलवाती। अम्मा ने कहा है 'अपने भरपेट खाई और दूसर केहु उपासै सूते। इ नाहीं होए पाई।' कर्म के दिन खाने की तैयारियां जब हो रही थीं, छोटे-छोटे बच्चे काम में जुटे थे। कोई मटर छील रहा था तो कोई झाड़ू मार रहा था। इन बच्चों को किसी ने इकट्ठा नहीं किया था, ख़ुद ही काम पर भिड़े थे। उनमें से अधिकतर को नहीं पता है कि अम्मा अब लौट कर नहीं आने वाली है। घर में अम्मा ही संविधान थी। जब पापा को कोई काम नहीं करना होता था तो वे यह कहकर टाल जाते थे कि अम्मा रिसियाई। अब पापा के पास कोई बहाना नहीं है। कभी सोचा नहीं था कि अम्मा के बिन भी ज़िंदगी होगी। साल भर पहले दिसंबर की ही बात है अम्मा को हल्की सी चोट लग गई थी। भइया जनरेटर ठीक करवा रहे थे, अम्मा ख़ुद रिंच देने आ गई। उसी दौरान अम्मा के पैर किसी चीज़ से टकरा गए तो खून निकल आया। भइया ने आसमान सिर पर उठा लिया था। अम्मा के जाने के बाद चिता को जलाने के लिए लकड़ियां भी भइया इकठ्ठा कर रहे थे, घाट पर। कितना क्रूर होता है समय। जिसे खरोंच आ जाए तो इतनी बेचैनी होती थी, उसी को जलाने के इंतज़ाम में पूरा कुटुंब एक साथ खड़ा था। अम्मा ने अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ा है। अम्मा उन चंद ख़ुशनसीब लोगों में से एक है जिन्होंने अपनी तीसरी पीढ़ी देखी है। पनाती-पनातिनों की पूरी फौज है अम्मा के पीछे। अम्मा बंट गई है। किसी की आंख अम्मा की तरह है तो किसी नाक। कोई अम्मा की तरह सोचता है। लेकिन अब किसी एक में पूरी अम्मा का मिलना मुश्किल है। पूरी तरह अम्मा कहां देखूं? अम्मा मिलेगी नहीं, ढूंढनेसे भी।
जाना ही नियति है। अंतिम सत्य भी। सनातन परंपरा को मानने वाले गीता की उक्तियां जानते भी हैं। पूरी नहीं लेकिन आधी-आधूरी तो ज़रूर। नैनम् छिंदंति शस्त्राणि नैनम् दाहति पावक:। अच्छा श्लोक है लेकिन समझ से परे। जब कोई अपना जाता है न तो सारी कहानियां-कथाएं, पुराण-भागवत रास नहीं आते। ऐसा लगता है कि इन्हें किसी उन्माद में रचा गया होगा। जब कोई इन्हें पढ़कर दिलासा देता है तो खीझ होती है। बहुत बकवास लगता है यह सब। सारे दर्शन लीपापोती से इतर कुछ और नज़र नहीं आते। बीते दिनों में कई बार चीख़-चीख़कर रोने का मन कर रहा है। अम्मा चली गई है। मंदिर, देवता, चारोधाम सब अम्मा तक सिमटा था। अब अम्मा ही नहीं है, बिन अम्मा घर कैसा। सबके होते हुए भी घर अजीब सा लगरहा है।
अम्मा! कुछ साल और रुक जाते तो का बिगड़ि जात। ते काहें चलि गए रे। पर जनवरी 07, 20193
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ब्लॉग करें!है।
लोग साथ हों तो बेचैनी, न हों तो अजीब सी चुभन। ठहाके हर बार अच्छे नहीं लगते, अपनी हंसी भी कई बार ख़राब लगतीहै।
ख़ुश होना चाहते हैं लेकिन हो नहीं पाते। सच है जो गया है उसे लाया नहीं सकता, फिर भी मन किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए रहता है। इक उम्मीद कि जो बुरा सपना हम देख रहे हैं अचानक से टूट जाएगा। सब सपना है जिसे हम देखकर परेशान हो रहे हैं। आख़िर आंखें मूंदने पर हमारे आसपास दुनिया होती ही कहांहै?
जगह बदलते ही उस जगह के होने का क्या प्रमाण रह जाता है। शून्य, सब शून्य। पर शून्य को मन मानता कहां है। थोड़ी सी चेतना मन पर भारी पड़ती है। साहित्य हर बार दिलासा दे ज़रूरी नहीं, कई बार अवसाद भी देता है। गहरा। कोई अच्छा नहीं लगता। ऐसा लगता है कि मन पर महादेवी का अधिग्रहण हो गया हो, तन निराला हो गया हो, जिसे कुछ भी सुधि नहीं। कहानियां स्थिर मन से पढ़ी जा सकती हैं। कविताएं उद्विग्नता में नहीं समझ आतीं। दोनों स्थितियां जूझ रहीं हैं एक-दूसरे से। मन कह रहा है सब बीत जाएगा। बुद्धि कह रही कि कुछ नहीं बीतता। जो बीत गया है, वह भूलता नहीं, जीवन बच्चन की कविता नहीं है, व्यवहार है। धरातल पर आकर सिद्धांत बदल जाते हैं। टीस, पीर, मोह सच है, भूलना आदर्श स्थिति। व्यवहार और आदर्श दो 'ध्रुव' हैं, जिन्हें कोई काल्पनिक रेखा नहीं मिला पाती। ......सांत्वना....दूसरों को देना कितना आसान है....ख़ुद के लिए नागफनी है। गहरे भेदतीहै।
पर नवंबर 15, 20182
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ब्लॉग करें!गई है!
हादसों की आदत हो गई है. हादसे हर बार आंखों में ढेर सारा आंसू देकर चले जातेहैं.
अमृतसर हादसे में जिन लोगों की मौत हुई है उनकी तस्वीरें देखकर दिल थमा सा जा रहा है. इतनी विभत्स तस्वीरें शायद ही पिछले दिनों में देखने को मिली हों. बहुत डरावनी तस्वीरें हैं भीतर से कंपकंपा देने वाली. दशानन का दहन हो रहा था, कइयों के आनन छिन्न-भिन्न हो गए. विभत्स तस्वीरें आ रही हैं. जिन्हें देखने के लिए साहस चाहिए. यह प्रकृति की मार नहीं थी. न ही किसी आतंकी संगठन की पूर्वनियोजित हत्या. यह हादसा कैसे हुआ इसका अंदाजा उन लोगों भी नहीं जिनकी मौतहो गई.
रावण का पुतला अपने साथ कई जीवित लोगों को लेकर चलागया.
हादसा हुआ पंजाब के अमृतसर के जोड़ा रेल फाटक के पास. ऐसी खबरें चल रही हैं कि कम से कम 58 लोगों की मौत हो गई है और 72 से अधिक लोग घायल हो गए हैं. आंकड़े और भी बड़े हो सकते हैं. पठानकोट से अमृतसर जा रही डेमू ट्रेन की चपेट में इतने लोग आए और चले गए. रावण दहन के साथ-साथ इतने निर्दोष लोग भी जा चुके हैं. मृत्यु के बदले कोई मुआवजा नहीं दिया जा सकता. परिस्थितियों और प्रशासन को कोसा जा सकता है लेकिन किसी को वापस नहीं लाया जासकता.
हे भगवान, मृतआत्माओं को शांति दें...मन बहुत उन्मनहै.
-अभिषेक शुक्ल (तस्वीर प्रतीकात्मक) पर अक्तूबर 19, 20181
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ब्लॉग करें!अक्षर।
कवि अपनी रचनाओं में उन्माद की हद तक काट-छांट करता है। ज़रा भी दयावान नहीं। कवि को पता है कि उसकी रचनाएं उत्पाद नहीं हैं जिनके विनिमय से उसे कुछ मिले। कवि जानता है कि वह मूर्तिकार नहीं है, उसे पता है कि वह सुनार भी नहीं, फिर भी उसे कविताओं की काट-छांट बहुत प्यारी है। क्यों है, इसका जवाब उसे भी नहीं पता। वह उलझता है, टूटता है, थकता है, बेचैन रहता है, कहते-कहते अटकता है क्योंकि कवि मन की कभी कह नहीं पाता। अंततः कृत्रिमता उस पर बहुत भारी पड़ती है, जो उसे भीतर से ख़ाली कर देती है। रिक्तता! कवि की यही नियति है जो उसे बिन मांगे मिल जाती है, जिसमें वह कुछ रचने की संभावनाएं तलाशता है। -अभिषेक शुक्ल पर अक्तूबर 16, 2018कोई
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ब्लॉग करें!जनवाद!
भाषा पर बहस करने वाले ज़्यादातर लोगों के भीतर निपट आभिजात्य आत्मा है। स्वप्न या मद में भी इन्हें 'जन' की सुधि कहां? समाचारों की भाषा साहित्य की भाषा बन गई है। संपादकों ने अपने 'वरिष्ठों' से सीखा है कि भाषा ऐसी हो, जिसे अनपढ़ भी समझ ले। किसी ने अनपढ़ को सुपढ़ बनाने में रुचि ही नहीं दिखाई, क्योंकि 'जन' की सुधि किसे? यही वजह है कि अनपढ़ व्यक्ति को 'एक्सक्यूज़ मी' और 'प्लीज़' कहना आ गया लेकिन 'कृपया' अथवा 'क्षमा' कहना नहीं आया। साहित्य वही नहीं है जिसे प्रेमचंद ने लिखा है, दिनकर, प्रसाद, अज्ञेय, महादेवी और भारतेंदु ने भी जो लिखा उसे भी साहित्य ही कहेंगे। बहुत नाम छूटे भी हैं इनमें। विश्वभर की तमाम भाषाएं लोग सीख रहे हैं। जिन लिपियों और भाषाओं से हमारा कोई परिचय नहीं, उन्हें हम सीख लेते हैं, लेकिन हिंदी? शब्द क्लिष्ट नहीं होते, सहज होते हैं। क्लिष्ट कहकर उन्हें प्रचलन से बाहर कर दिया जाता है। वे किताबें जिनमें तथाकथित 'क्लिष्टता' का प्रयोग ज़्यादा है, वे निरर्थक नहीं, उन्हें पढ़ा और समझा जा सकता है। क्लिष्टता से जुड़ा हुआ एक प्रसंग याद आ रहा है। उन दिनों मैं दिनकर को पढ़ रहा था। उन्होंने लिखा, "गत्वर, गैरेय, सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर, थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जनगंभीर।"
मुझे गत्वर, गैरेय, सुघर और भूधर का अर्थ नहीं पता था। मुझे लगा कि ये शब्द मुझसे कह रहे हों कि 'दिनकर को समझना हो तो पढ़ो। तुम्हें समझ में नहीं आ रहे शब्द तो यह तुम्हारी जड़ता है, दिनकर इसके लिए दोषी नहीं हैं।' हम सब शब्दों के अपराधी हैं। हमने शब्दों की उपेक्षा की है। सृजनशीलता की चौखट से शब्द अपमानित होकर लौटे हैं। शब्द निहार रहे हैं नई पीढ़ी को, मिल रही उपेक्षा से टूटते जा रहेहैं।
जब किसी देश में नवीन राज व्यवस्था जन्मती है और वृद्ध राजा को अपदस्थ कर, नया राजा पदस्थ होता है तब वृद्ध राजा राजपाट, संन्यास या वानप्रस्थ नहीं चाहता। वह मृत्यु चाहता है। कुछ शब्द वही चाह रहे हैं। नई पीढ़ी उनकी अंतिम इच्छा पूरी कर रही है. शनैः शनैः। पर सितंबर 20, 20184
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